
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी की देवशयनी एकादशी वाले दिन चार माह के लिए सो जाते है। इसके बाद में चार महीने की निद्रा लेने के बाद वो कार्तिक शुकल एकादशी को जागते है। इस एकादशी के दिन से ही चातुर्मास का भी अंत हो जाता है। यही वजह है जिसकी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को हरी प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एकादशी का व्रत पूरी विधि विधान से करते है तो पितृदोष का भी निवारण हो जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। कहा जाता है इस दिन विधिवत व्रत करना चाहिए ऐसा करने से जो लोग पितृ दोष से पीड़ित है वो सही हो जाता है। जब यह व्रत पितरो के लिए किया जाता है तो इससे बहुत अधिक लाभ मिलता है। इससे पितृदोष पीड़ित लोगो के पितृ नरक के दुखो से छुटकारा पा सकते है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवं अपने इष्ट देव की उपासना करनी चाहिए। इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः “मंत्र का जाप करने से लाभ मिलता है। शालीग्राम का तुलसी के साथ में विवाह देवउठनी एकादशी के दिन ही होता है। इस दिन तुलसी जी की पूजा का भी बहुत महत्व है। तुलसी दल अकाल मृत्यु से बचाता है। कहा जाता है शालिग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
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